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वह रहेगा सब कहीं / राजी सेठ

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आकाश ने कहा
वह रहेगा नहीं जल में न थल में
न धरती पर न बस्ती में
न नगर में न जंगल में
न पेड़ों पर न घरों पर
न तन में न मन में
न चुनेगा कुछ न छोड़ेगा कभी
वह रहेगा अभीत
निर्प्रीत
अखण्ड सब कहीं

घर ने कहा--- मैं तुम्हे बाँट दूंगा
खड़ा रखूँगा बाहर
दरवाजा बन्द करके
जल ने कहा--- धर लूँगा तुम्हें भीतर
प्रतिबिम्ब बना कर
बस्ती ने कहा---बना लूँगी तुम्हे अपनी
छत
धरती ने कहा---टिका लूँगी तुम्हे अपनी
बाहों पर
पेड़ों ने कहा---उचक कर चाक कर देंगे
सीना
तन ने कहा--- मुझे नहीं चाहिये अपहुँच
मन ने कहा--- तू निस्सम्बन्ध अमूर्त

आकाश हँसा
चमका, गड़गड़ाया
फिर बरस गया सब पर
सब कहीं