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इश्क तुमसे किया नहीं होता / सलीम रज़ा रीवा
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इश्क तुमसे किया नहीं होता
जिन्दगी में मज़ा नहीं होता
रात भी यूँ हँसी नहीं होती
दिन भी यूँ ख़ुशनुमा नहीं होता
जिन्दगी तो संवर गयी होती
ग़र वो मुझसे जुदा नहीं होता
उसकी चाहत ने कर दिया पागल
प्यार इतना किया नहीं होता
दिल किसी का दुखा नहीं होता
तो फिर इतना बुरा नहीं होता
ज़ख्म खाकर भी मुस्कुराने का
सब में ये हौसला नहीं होता
सब उसी का रज़ा करिश्मा है
कुछ ना होता खुदा नहीं होता