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आकाशवाणी / शबरी / अमरेन्द्र

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कि तखनिये गूंजी उठलै
पूरे पम्पापुर-मतंगवन,
सातो सुर के एक लय मेॅ
गूंजी पड़लै झन-झनन-झन।

सब दिशा सेॅ एक बोली
”मत पुकारोॅ, कोय नै ऐथौं,
हे शबरबाला सुनी लेॅ
चाहवोॅ सब व्यर्थ जैथौं।

”जे बुझै छौ नी, गलत छै
ई सही छेकै, ई जानोॅ,
सच कहीं की झूठ होलोॅ
तों भला कत्तो नै मानोॅ।

”राम रोॅ आदेश छेलै
जे प्रजापति लोक केरोॅ
तोरोॅ शंका, भ्रम, व्यथा ई
व्यर्थ सब छौं; मोॅन फेरोॅ।

”कुछ तेॅ हेनोॅ बात होतै
ई निठुर निर्णय लियै मेॅ,
जे रहस बस राम जानै
बाकी तेॅ संशय जियै मेॅ।“

बोल भेलै बन्द औचक
पर गुंजैवोॅ बन्द नै छै,
सौन-भादो के दिनोॅ में
धूल रोॅ अन्धड़ चलै छै।

शबरी देखलकै दिशा दिश
कोय्यो नै छेलै वहाँ पर,
लोॅत-गाछोॅ-जंगलो-गिरि
काठ सब्भे जे जहाँ पर।

फूल उजरोॅ, नील, पीरोॅ
सब जरी केॅ खाक लागै,
ई हठासी की भेलै कि
नीचेॅ सबरोॅ थाक लागै।

सामने केरोॅ सरोवर
छै जमी केॅ पत्थरे रं,
लागै छै कुटियो ठो होन्हे
भूत-प्रेतोॅ के घरे रं।