भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखलौं दोस्ती, छलना छै / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:45, 6 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=रेत र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देखलौं दोस्ती, छलना छै
ठोकर दै केॅ निकलना छै
जीवन ज्वालामुखिये रं
जै पर आबेॅ चलना छै
दुखके आगिन भाग में लिखलोॅ
बर्फे नांखी गलना छै
आपनोॅ शासन भाले नांखी
जै पर खड़ा संभलना छै
जब तांय साधू नेता रहतै
रूपकुँवर केॅ जलना छै
कत्तो समय हुवेॅ कीचड़ रं
कमल बनी केॅ खिलना छै
अमरेन्दर केॅ टाली राखबोॅ
जीत्तोॅ साँप निगलना छै
-9.2.92