भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिन्दगी केकरा लेॅ जोगैलोॅ छी / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:50, 6 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=रेत र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिन्दगी केकरा लेॅ जोगैलोॅ छी
कैन्हें नी डूबी भाँसी गेलोॅ छी
हमरोॅ इतिहास नै बनतै होना
हम्मू गोबरधने उठैलोॅ छी
कोय मानै लेॅ नै तैयार होलै
खुशबू चंदन रोॅ बनी ऐलोॅ छी
आत्मा हमरोॅ छै अभियो गीता
जिल्द सें कत्तो भला मैलोॅ छी
ई कखनियो भी बलि हुवेॅ पारेॅ
हम्में सब पाठे रं चुमैलोॅ छी
अभियो हमरोॅ मनोॅ में रस उपटै
कत्तो पोकत छियै जुवैलोॅ छी
पहिले अमरेन रोॅ गजल सुनलौं
पहिले वार जी भरी अघैलोॅ छी

-3.7.92