भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नाना / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:12, 6 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=तुक्त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फुर-फुर-फुर-फुर उड़ै छै के
हर बातोॅ पर कुढ़ै छै के
सुतलौ पर गाबै छै गाना
खर्राटा लै खुब्बे नाना
नाना के खर्राटा केहनोॅ
राती ठनका ठनकै जेहनोॅ।