भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गामऽ में / कुंदन अमिताभ

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:05, 9 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन अमिताभ |अनुवादक= |संग्रह=धम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मंजर-मंजर गाछी के झरतें होतै
फलऽ के आश मन कोखी में पलतें होतै।
घमा घमजोर देहऽ के रग टुटी रहलऽ छै
बडुआ नदी के कलकल नजरऽ में ऐतें होतै।
साँझ दै वाला दीया के बरती छोटऽ भेॅ गेलै
डिबिया नेसै के चेष्टा जोर पकड़तें होतै।
चक्का डुबथैं बस्ती अन्हारऽ में डुबी गेलै
भोर लानै लेॅ सभ्भे जिदियैलऽ होतै।
अन्धर ऐथैं मुन्हऽ घरऽ के उजड़ेॅ लागलै
बचलऽ मुन्हा केरऽ चरचा सगर होतें होतै।