भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्राण-2 / कुंदन अमिताभ

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:18, 9 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन अमिताभ |अनुवादक= |संग्रह=धम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

की कहै छहो
खाली तोरै में बसै छौं
सचमुच तोंय मानव नै
कि नै जानै छहो
कि कहियो
राक्षसोॅ केरऽ प्राण
कोनो चिड़ैया में
बसै रहै
कि अखनकऽ मानव
तैहाकरऽ राक्षस
के जोरऽके नै छै
जों ऐन्हें छै
तेॅ आबऽ चेष्टा करऽ
चेष्टा सें हटाय केॅ
आपनऽ प्राण
दोसरा में बसाबै लेॅ
आबऽ बसाबऽ आपनऽ प्राण
पर्यावरण में
यहाँकरऽ छिरियैलऽ
गाछ बिरिछ में
आबऽ अलगाबै के पहिनै
वृक्षारोपण के परम्परा डालऽ
आरो
रोपी रोपी केॅ गाछ
पाटी दही सौंसे धरती
तभिये मिलथौं त्राण
तभिये बचथौं प्राण।