भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दीया जलाना छै / कुंदन अमिताभ
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:19, 9 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन अमिताभ |अनुवादक= |संग्रह=धम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जली रहलऽ छै बाती दीया कहै के छहो आदी
मरी रहलै मानवता कहै छहो आबादी।
दीया जलाना छौं जों दिवाली के उमंग में
तेॅ जलैइयै जिंदगी के अँधियारा केरऽ गर्भ में।
नै तेॅ घरऽ में नै आँगन में नै मंदिर आरो गुरूद्वारा
जलैइयै वहीं जहाँ रहलऽ छै जुग-जुग सें अँधियारा।
दीया जलैभेॅ माटी के कथी लेॅ जे क्षण भर वाद बुताबै छै
हवा केरऽ झोंका पैथैं जेकरऽ डेग डगमगाबै छै।
दीया जलैइयै अपनऽ मन के नै कहियो जे बुताबै छै
जुगऽ-जुगऽ ताँय जललऽ रहीकेॅ अँधियारा सदा मेटाबै छै।