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याद करी केॅ मोॅन पागल / धनन्जय मिश्र

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याद करी केॅ मोॅन पागल
पोखरी केॅ ऊ श्वेत कमल।

जैभैं फूले-फूल दिखेॅ
कटी गेलै ऊ सब जंगल।

कांटोॅ लै केॅ खड़ाहुनी
समझी केॅ एकरै पाटल।

बस्ती सब टा बही गेलै
अजब बरसलै ऊ बादल।

सच्चे भींजै छै पानी
आरो बरसै छै कम्बल।

सोची-समझी राह चलोॅ
खेल बिगाड़ै छै अटकल।

कहै ‘धनंजय’ कोय नै ऐतोॅ
दुख सें सभ्भे छै भीजल।