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दोहा गीत - १ / धनन्जय मिश्र
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भूलौं केना ऊ समय, जेकरा कहौ अतीत
जीवन के छुपलोॅ जहाँ सुख-दुख, मन के प्रीत।
पोखर में खिललोॅ कमल, भौंरा के गुंजार
असकल्ले बैठी वहाँ, गैवोॅ हमरोॅ गीत।
यही लगै कूकै कहीं, कोयल बैठी डार
हम्मेॅ तेॅ हारी गेलां, मुस्कै केकरोॅ जीत?
मन हहरै बेरथ वृथा देखी उलट के फेर
सब कालोॅ के सत्य ई, युग-युग केरोॅ रीत।
बालू-पानी सानी केॅ, खड़ा करौ दीवार
कहै ‘धनंजय’ खोली केॅ, गिरनै छै ऊ भीत।