भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
है रं दीन / अनिल शंकर झा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:01, 11 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल शंकर झा |अनुवादक= |संग्रह=लचक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भोरे-भोर चिड़िया कहलकै-
”अरे दुष्ट
कैहनें होली तोरॉे ई रं दुर्दशा?
कैहनें होय गेले ई रं कंगाल?“
हम्में कहलियै-
रे दुष्ट मैना!
तोरा पता नै-
हम्में होय गेलियै राष्ट्रपति
हम्में सुनै छियै-
प्रख्यात गायक के गान?
हमरॉ एक-एक क्षण छै बड़ी मूल्यवान।
बड़ॉ-बड़ोॅ राष्ट्राध्यक्ष सें भेंट,
रहै छै एक-एक पल के हिसाब।
आरो, तोरा हेनोॅ कठमुल्ला केॅ
दै छियै खिताब
हमलेॅ काम?
लिखा भर देना कहीं-कहीं नाम,
नारों में छै बड़ी शक्ति,
यै लेली राष्ट्र करै छै हमरोॅ भक्ति।
ओकरा बुझै में कुछ नै ऐलै-
अनपढ़ गँवार
कहलकै- ”हाय रे कवि!
तों होय गेले राष्ट्रपति?
तारोॅ है रं दुर्गति?
रसहीन, हृदयहीन-
गीत सुनै के फुर्सत नै?“
तों है रं दीन?