भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाग रे बगीचवा हे / अंगिका

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:54, 12 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=अंगिका }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

वही फूल बगिया गे अम्मा माय कोइलो जे बोलै हे।
कोइलो बोललै हरिनाम हे।
भक्ता लगैलकै रे सेवका- बाग रे बगीचवा रे।
सेवका लगैलकै फूल बाग हे।
बही गेलै पूरबा गे अम्मा माय- बही गेलै पछिया हे।
शीतल मैया नीनोॅ से निचित हे।
उठूँ- उठूँ- उठूँ गे अम्मा माय कत्तेॅ नानेॅ सुतली हे।
दुखिया नेॅ टेकलेॅ दुआर हे।
हम्में कैसे उठवो रे भगता- तोहरा के बोल सुनी
तोहरा के बडॅ छौ रे गुमान रे।
भूखें जे खैलकौ गे अम्मा माय- अछदेॅ के धान हे कुटी।
पिआसें पियलकौ गंगा नीर हे।
नंगटी पहरौ गे अम्मा माय लहरी पटोरबा हे।
चोंकें हेरैलकौ अरघेॅ दूधें हे।
भूललो चूकलो गे अम्मा माय- माफ करि देवेॅ हे।
लागौ मैया बालका गोहार हे।