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दूसरोॅ सर्ग / अतिरथी / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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‘कर्ण तेजस्वी, अतिरथी अद्भुत
केकरौ की बुझतै ऊ मानी
जेहनोॅ महारथी ऊ होने
धरती पर छै अद्भुत दानी।’

‘एक तेॅ वीर बहुत बलशाली
महाधनुषधर अतिरथी होने
ओकरोॅ सम्मुख तेॅ कालो भी
पल भर लागै ठिगने-बौने।’

‘कौन्तेय भी ई बात केॅ जानै
कृष्णो केॅ मालूम छै सबटा
जब तक कुण्डल-कवच सुरक्षित
हार कर्ण के सोचबोॅ झुट्टा।’

‘कर्ण तेजस्वी, अतिरथी अद्भुत
केकरौ की बुझतै ऊ मानी
जेहनोॅ महारथी ऊ होने
धरती पर छै अद्भुत दानी।’

‘दानी’ याद ई ऐथैं सुरपति
चमकी उठलै पल भर लेली
मन पर पड़लोॅ बोझ दुखोॅ के
देलकै कोसो दूर धकेली।

‘दान’ यही बस एक राह छै
ऊ अतिरथी के बल छीनै के
आरो नै कोनो उपाय छै
ओकरोॅ प्राण हरै के, लै कै।’

‘दान’ यही बस एक राह छै
जेकरा सें बंधलोॅ ऊ राधेय
जों माँगी लौं दान में कुण्डल
आरो कवच तेॅ विजयी कान्तेय।’

‘युद्ध नीति में पाप-पुण्य के
की माने छै, के मानै छै
आपनोॅ जीत हुएॅ बस केन्हौ
नीति यही एतनै जानै छै।’

‘देखी रहलोॅ छियै यही तेॅ
विनय-धर्म के खिल्ली उड़तें
के राखौ पारै छै एकरा
युद्धभूमि में लड़तें-लड़तें।’

‘भले विधर्मी कहतै हमरा
आरो छली, अनैतिक कहतै
लेकिन मन जे अभी सहै छै
ऊ तेॅ कलकोॅ बाद नै सहतै।’

‘हों, हमरा कल ही जाना छै
याचक बनी केॅ विप्र-भेष में
धरती पर जे स्वर्ग जकां छै
वही पुरातन अंग देस में।’

सोची-सोची सुरपति गदगद
लै लेलेॅ छै कवच आ कुण्डल
अर्जुन के हाथोॅ में स्थिर
युद्धभूमि के सौंसे मण्डल

कवचहीन, कुण्डल से हीनो
कर्ण अनाथोॅ रं लागै छै
पकड़ै लेॅ ऊ भाग्य बढ़ै छै
भाग्य तीर रं ही भागै छै।

विपदा पर विपदा आवै छै
महादान सें महारथी पर
मुसकै भीतरे-भीतर सुरपति
अतिरथी हेनोॅ वीरव्रती पर।

देखै छै आँखी सें सुरपति
बादल महाप्रलय के आबै
आरो बीच समुन्दर बीचे
महापोत केॅ घेरी डुबाबै।