भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्री कृष्ण भजन / कनक लाल चौधरी ‘कणीक’

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:02, 16 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कनक लाल चौधरी ‘कणीक’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे! हमरोॅ अरजी सुनोॅ श्री कृष्ण हो! सामरोॅ गिरधारी
हे! हमरोॅ मन में बसोॅ नन्दलाल हो! बजाबोॅ हिय बाँसुरी

तोहें तेॅ कत्तेॅ नी पापी केॅ तारल्हौ
कत्तेॅ भङठैला केॅ रस्थौ सुझैल्हौ
बिना गरूढ़है के द्वारखौ सें धैल्हौ
सभां पंचाली के लजभौ बचैल्हौ
हे! हमरी नैय्या ठो बीच्है मंझधार हो! उबारोॅ चक्रधारी

इन्दर के कोपोॅ सें गोकुल उबारल्हौ
गीता में अर्जुन केॅ रस्थौ बतैल्हौ
धर्मोॅ केॅ जोगै लेॅ धरती पे अैल्हौ
सभ्भै अधर्मी केॅ नरकोॅ पठैल्हौ
हे! हम्में बड्डी बेबस-लाचार हो! अँखवा हेर्हौ मुरारी

सिंह वाहिनी, असुर नासिनी,
जगज्जननी, देवी दुर्गा!
एक पापी द्वार अैल्हौं
शरण मांङहौं भगवती माँ

नैं पता छै मंत्र-जन्तर, नैं बोलाबै के ठिकानोॅ
पूज्हौ-विधि कटियो नैं जानूं, नै जानै छी जोग-ध्यानोॅ
भक्ति तोरोॅ केना के करिहौं? हम्में अनाड़ी, हम्में अज्ञानी
तोहिं बतलाभौ माँ आर्या! तोंहिं बतलाभौ भवानी!

खड्ग धारिाी, महिष मर्दिनी
शूल धारिणी, चन्द्रघण्टे!
द्वार खोल्हौ, आँख हेर्हौ
शरण दै दहू, माँ अनन्त!

यै धरा पेॅ कत्तेॅ होतै, हमरे सन अपराधी प्राणी
जेकरा लेली द्वार खोलल्हौ, शरण देल्हौ माँ तपस्वनी
सुनै छी तोरोॅ नाम जपथैं, पाप आपन्है-आप भागै
द्वार खोल्हौ माँ अपर्णा! मम दुखी के भाग जागै

पाप मोचिनी, चण्ड घातिनी
शुम्भ हणिणी, सिद्धिदातृ
सब छोड़ी तोर्है पकड़लां
शरण दै देॅ मातु-अम्बे!

नें छेॅ इच्छा मोक्ष केरोॅ नैं सुखोॅ के खान पैबोॅ
बस, कृपा कात्यायणी केॅ समय बीतेॅ नाम लेबोॅ
पूत तेॅ कपूतो होथौं, माय नहीं होय छै कुमाता
येहेॅ जानी वैष्णवी माँ, जोड़ी लेॅ एक बेरि नाता
ब्रह्मचारिणी, धनुषधारिणी,
मुंड नाशिनी, माँ त्रिनेत्रा!
शैलपुत्री शरण दै देॅ
द्वारि पर छौं एक अजुर्दा।