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कवि रोॅ हुलिया / कनक लाल चौधरी ‘कणीक’

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बात नै छेकै अैजकॉे काल्हको, बतिया छेकै बहुत पुरानोॅ
मुगल-फिरङगी अैल्हौ पैन्हें, इतिहासोॅ केॅ साखी जानोॅ

तखनी राजां औ महराजां, पोसै कवि जी आरो गबैय्या
पंडित, पौनियाँ सभ्भे पोसाबै हजिर जबाबी औ हँसबैय्या

मुगलकाल में अकबर अैलै, जौंने चलैलकै दीन-इलाही
नवरत्नोॅ दरबारी लैकेॅ, देलकै वें फरमानी साही

सब के हुलिया अलग करलकै, जत्तेॅ रहै, सभ्भे दरबारी
कवि के हुलिया होलै मोकरेर, धरती-कुरता साथैं झोरी

तहियै सें है हुलिया चललै, हाल तलक रहलै है जारी
फिन कटि टा संशोधन भेलै, माथोॅ बाल लगेॅ जस नारी

-से एक झोरी कान्हा टाङने धोती पर कुरता ठो चढ़ाय
गोष्ठी ढूकेॅ कवि जी चललात, बड़का-बड़का बाल बढ़ाय

एक टा चप्पल टुटले-भाङलोॅ दोसरा में कत्तेॅ नी टांका
भूख सें पेटबा फक-फक बोलै, रातिहै सें पड़लोॅ छेलै फांका

गोष्ठी जाय के हुलिहै देखथैं पत्नीं भेली आग बबूल्ला
वही समय में पहुंची गेलै, सूद उघाबै ले अबदुल्ला

कवि केॅ गोष्ठी भारी पड़लै, दू तरफा हमला देखी केॅ
कविता कनोॅ सें फुर्र सें उड़लै, अब्दुल्ला के जिद्द लखी केॅ

पत्नी ने ही परम्पत जोगी, गेंठी से फिन सूद भरलकी
आपने टीसन वाला पैसा, दै अब्दुल्ला केॅ टरकैलकी

फेनू आपनोॅ कवि सें बोलली, सत्तू, नोॅन कहीं सें लानोॅ
रतिया तेॅ फांक्है में कटलै, दिनकोॅ बास्तें सतुहै सानोॅ

कविता सौतनी बड्डी सताय छै, कत्तेॅ घोॅर बरबाद करलकै
फटक हाल होलै कवि तखनी, जखनी ओकरा गलां लगैलकै

लछमी के दू दूश्मन पैन्हें, एकम विपदा दुजे दलिदरी
तेसरी में है कविता जुटली, जौनें घ्ज्ञातै सदरहै-सदरी

यही लेली हे, पति परमेसर! जल्दी है सौतीन ठो त्यागोॅ
कोनोॅ दोसरोॅ धन्धा टेभौॅ दू पैसा अरजै में लागोॅ

कवि जी के मनमा भी डोलतै, गोष्ठी जाय के बात हटैलकै
झोरी फेकी कान्हा पर सें, सेलून पहुंची बाल कटैलकै

कविता सें नैं पेट भरै छै, है सोची रोजगार धरलकै
दू पैसा फेनू अरजी केॅ, पत्नी इच्छा पूर्ण करलकै

कुछु दिनोॅ तक येहेॅ रङ चललै, गोष्ठी नागां करै मलाली
मोॅन मसोसै, जीहा कचोटै जे रङ बकरा हुवै हलाली

कवि पटियैलकै फिन मालिक केॅ, गोष्ठी दिन के भेटलै छुट्टी
दरमाहा ठो कुछुवे कमलै, पैसभौ दू ठो अैलै मुट्ठी

इल्लत-हिसखोॅ कहीं छुटै छै? जेकरोॅ जहाँ पेॅ लागी गेलै
पैन्ट-सर्ट पिन्ही गोष्ठी ढुकलै, साबिक हुलिया भागी गेलै

कुरता, धोती या कि पैजामा, झोरी के भी छुटलै साथ
नारी बाला केश कटैलकै, बेग-अटैची अैलै हाथ

वही दिनोॅ सें कवि सिनी केॅ कविता के संग आरो धंधा
करै लेॅ पड़लै हुलिया बदली, नैं रहलै पत्नी के फंदा

पत्नीं देखलक कवि जीं आवेॅ, दू पैसा जे कमावेॅ लागलै
सौतीन केॅ फिन बहिन बनैलकी, हुलिहौ गोष्ठी वाला भागलै