भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रहस्य / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:44, 24 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शायद तोंय नै समझेॅ पारभौ
ई जुआन रातॅ में
एकरस झड़ी रहलॅ बरसातॅ में
हमरॅ भींगै के कारण
हमरॅ नहाबै के भेद
की कहियौं पिया
हम्मू नै जानै छियै
तहियो भींगी रहली छियै
देखॅ पिया
यै बरसाती बून्देॅ नें
कैन्हॅ जादू करी देलेॅ छै
कि हमरा देहॅ रॅ एकेक उभार
दिव्य-दृष्टि पाबी केॅ ताकेॅ लागलॅ छै हमरा
आरो हम्में
लाजॅ सें लाल होय गेली छियै
नै देखै में असमर्थ आपनॅ आँखी केॅ
हम्में आपने हाथॅ सें बन्द करी लेनें छियै

प्रीतम! हमरा, हँसी आबै छै अपना पर
की होय गेलॅ छै हमरा?
केकरॅ प्रतीक्षा में
कैन्हैं पगलाय गेली छियै हम्में?
तोंय नै ऐभौ ई जानी केॅ भी
कैन्हेॅ भींगली-तीतली खाड़ी छियै
ई कैन्हॅ आनन्द छेकै
जें बनाय देलॅे छै हमरा बाबरी
कैन्हॅ ई उन्माद छेकै
जें करी देलॅे छै हमरा उन्मत्त
शरीर आरो मॅन दूनू में लाचार