भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जोगिया दुलह आजु कोहवर जाय / करील जी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:53, 26 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाँके बिहारी झा 'करील' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गीत गौरीश
लोक धुन। ताल कहरवा
जोगिया दुलह आजु कोहवर जाय,
छवि कहलो न जाय॥धु्रव॥
सारी सरहज द्वार छेकलन्हि आय।
नेग दीजै दुलहा बाबू दीन्हि जो माय, छवि.॥1॥
एक सखी तब कही मुसुकाय।
सुनहु सजनि इनका बाप न माय, छवि.॥2॥
सुनहू सदाशिव, कहऊँ उपाय।
कोहवर जैहो लागू गौरी के पाय, छवि.॥3॥
करहि विनोद सब सखी समुदाय।
सहज निलज लाज लजाय, छवि.॥4॥
एही बीच नाग एक उठल फुफुआय।
सखी सब भागी संकर गेलन अगुआय, छवि.॥5॥
ऐसन दुलह नहिं देखल माय।
उमगि ‘करील’ एही कोहबर गाय, छवि.॥6॥