भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कंगना रसें रसें झुनुर झुनुर बोलै / भगवान प्रलय

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:18, 27 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भगवान प्रलय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कंगना रसें रसें झुनुर झुनुर बोलै
दुनियां जैसें चलै तैसें डोलै

जहिया निदरदी पर पाप डिरिरैलै
कंगना के झुनकी सें ताप छिरिरैलै
झांसी में तेगा बजाय महारानी
हरदम बेधरमी केॅ तौलै

खनकै छै कंगना हीरामन के गाव में
अँचरा मलीन भेलै महुआ के छांव में
महुआ घटवारिन के लोग गीत गाय छै
जट्टा जटनियाँ केॅ बिछुआ लगाय छै
हँसुला पिन्है हँसुला खोलै

विरहा में कजरी में ई खनखनाय छै
रसिया के पगड़ी में कखनू बन्हाय छै
कखनू झमाझम बाजै पनघट पर
मटखा पर मटका नाय डोलै

घोॅर छै अन्हार दीया आँख दुख बाती
लोरोॅ के तेल जरै सारी-सारी राती
लोरी गाबै ममता कगना के ताल पर
अँचरा में सुख-दुख टटोलै

कंगना पिन्ही ममताँ दुदियाँ चलाय छै
तैय्यो कुलछनी अभागिन कहाय छै
रीत के बनैलकोॅ छै दक दक-समाज में
हाँसै कानै, नाँचै, डोलै

कंगना में गंगा के पानी बहै छै
लपका-पुरनका कहानी कहै छै
खाड़ी रहै छै हिमालय रं हिम बनी
जुग-जुग सें डगमग नाय डोलै