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शिशिर पापी कसाय / ऋतुरंग / अमरेन्द्र

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शिशिर पापी कसाय,
की रङ सें घूरै छै घूमीकेॅ आय
शिशिर पापी कसाय।

पाला मलकाटोॅ पर शितलहरी काता
छेवै करेजे टा, वामे विधाता
बुन्नी की बरसै! की यहू कम घाय
शिशिर पापी कसाय।

कस्तूरी-केसर लै रानी सब हँसलै
कम्बल ठो हमरासें सट्टीकेॅ सुतलै
किंछा सोझरैलोॅ सब गेलै ओझराय
शिशिर पापी कसाय।

अबकीयो सूर्योॅ के साथी नै ऐलै
सपना सब मड़कीकेॅ आँखी में हेलै
राखलेॅ तेॅ छेलियै ई मन केॅ सोन्हाय
शिशिर पापी कसाय।

फागुन में ऐलै तेॅ ऐलै की ऐलै
जिनगी रोॅ पहिले सुख पहिलैं बोहैलै
ऋतु नै, ऋतुवे संग उमिरो ओराय
शिशिर पापी कसाय।