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पिया चैता रोॅ भोर / ऋतुरंग / अमरेन्द्र
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पिया चैता रोॅ भोर।
भिंजलोॅ स्नेहोॅ सें छै पोरमपोर
पिया चैता रोॅ भोर।
लयकी बिहैली किशोरी रङ झलमल
बाते-बातोॅ पर की हाँसै छै खलखल
माथा सें फेकी केॅ अँचरा-पटोर
पिया चैता रोॅ भोर।
गुदगुदी लगाबै छै हमरा हरजाई
बूझै नैं फुलबारी, खंदक आ खाई
बान्है छै बान्हन सें, डारै छै डोर
पिया चैता रोॅ भोर।
कौनें समझैतै, के बरजेॅ, जे मानै
सधवा, नै विधवा, नै विरहिन पहचानै
रगड़ी जाय सब्भे के ठोरोॅ पर ठोर
पिया चैता रोॅ भोर।