भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केकरा से कहबै कौवनै सुनतै / छोटे लाल मंडल

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:35, 28 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=छोटे लाल मंडल |अनुवादक= |संग्रह=हस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

केकरा सें कहवै कौवनें सुनतै,
हमरो वतिया विचारी के,
सांच कहों ते आंच आवै छै
सभ्भै बोलै छै तिरसी के।

कोय केकरौं सें कम्मी कैन्है
जे पथरो में ईस देखावै छै,
धरती रो पानी अकासो में फेकै,
सुरूजो रो पियास बुझावै छै।

मृत लोको में कहाँ छै पीतर
होकरौ भोजन पढ़ावे छै
गीता रामायन वांच वांचिके
स्वर्गो में सीढ़ी लगावै छै।

मांटी के पिंनड वनाय के देखो,
वकरा भैसा के छैपै छै,
देहो के रोगवा दूर कही के,
घर भरी भोग लगावै छै।

अंधविश्वासें नें जकड़ी लेलकै,
भय के भूत चढ़ावै छै,
वापें दादां जे करनें अैइलै,
सच्चा धरम ठहिरावै छै।