भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चल रे कीरत सांझा अैइलै / छोटे लाल मंडल

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:39, 28 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=छोटे लाल मंडल |अनुवादक= |संग्रह=हस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चल रे कीरत सांझा अैइलै टकटोंयियां में जैइतौ प्राण,
सुनि के वधवा वड़ी घवरैलै कोय हमरा सें छै वलवान।
जान बचतै ते देखल जैतै पीछू धड़लकै जाय के किसान
किसान आपनों घर घुसी गेलै वघवा छिपलो छै घोड़सान।
एक दिन चोरबा टेवा में रहलै सुन्दर घोड़ा छै वलवान,
जेन्है हाथ वठैलकै आगू धड़लकै घोड़वा के पूछड़ी कान।
थर थर कांपै जी घवरावै सचमुच सांझा के भेलै भान,
सांझा भूत ते फानियै गेलै दौड़ै गल्ली फिर मैदान।
भोर भेलै ते वधवा के देखै डर के मारै छोड़ै छान,
वघवा भगलै जंगल तरफें सांझा चोरबा बड़गद फान।
भोलू गीदड़ा नें देखै तमासा कैन्हैं राजा आय छै हैरान,
फें फें करनें वात नैं फुरै वचलो आय सांझा सें प्रान।
अजमावै ले भलुवा चललै वड़गद गाछी तंरो छै ठिकान,
उपरें नीचें सगरो ताकै कहीं नै झलकै सांझा के भान।
चोरवा केरो खैर नैहै छै भालू बडी छै शैतान,
ऐन्हों जोखी के चोरवा कुदलै चांप चांप कहीं जाय छै जान।
वेदम करी के भलुवा के छोड़े आपनें छिपलौ खोहड़ी मान्द,
गीदड़ा चललै दल वान्ही के पूंछड़ी पूंछडी जोड़ी के गांठ।
उपरें नै छै खोहड़ी खोजैं दुम ढुकाय के हिलै हिलान,
धड़लक पूंछ खींचै छे भीतरें खैचं खैच कही के चिन्हान।
वाहरी चोरबां मारै चक्कर भव के दुखवा छैकै महान,
संसारी नर समझै नै छै वात नै मानैं करै तूफान।
वात यहे कि नर के लीला मनों में गुथै छै अभिमान,
संत कवि विचार कहै छै की नहला दहला छै एक समान।

साखी-आंखी गियान की समझ देख मन मांहि,
विनु साखी संसार की झगड़ा छुटैं नाहिं।