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शरत-शोभा / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
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अगस्त्य की उगथैं
पोखरी आ झीलोॅ के पानी
ऐना रं झलमल छै
पारे रं नद्दी ठो चंचल छै
सब्भे कुछ अमल-धवल
जेहनोॅ कि सरंगोॅ में चमकै छै चन्द्रमा।
ओकरा सेॅ केन्होॅ केॅ कम की छै
अमल-धवल सरंगे ठो
होने छै, धोलोॅ-स्वच्छ
मेघोॅ के टुकड़ा सब
तैरै छै झीलोॅ पर।
कौनें बोहारी केॅ
राह वाट नीपलेॅ छै
कन्हौं नै कीचड़, नै कादोॅ
जेना ऐलै नै रहेॅ ऊ भादोॅ
धरती के मुँह लागै
नभ के नक्षत्रे रं
आरो तेॅ आरो
सूर्यो तक होने छै पोछलोॅ आ पाछलोॅ
हेने ही रहतै ई धरती-सरंग
कातिक तक
जब तक कि धरती पर रहतै
सुकुमारी शरत।