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शिशिर केॅ की पता / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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जंगल मेॅ
कनकन्नोॅ हवा सेॅ बेखबर
उन्मत्त बनलोॅ हाथी के झुण्ड
चौकड़ी भरतेॅ हिरण
आरो चमड़ी-माँसोॅ सेॅ मौटैलो भैंस केॅ
छलाँग मारतेॅ देखी
शिशिर की जानतै
कि मड़ैया मेॅ
बिना बिछावन के खटिया पर
केना काटतेॅ होते समय गरीब गुरबा
जेकरोॅ वास्ते माघ
सिरहाने मेॅ बैठलो डायन रं आवै छै
आरो दिन कसाय रं?
की सब्भे लेॅ?
गलीचा पर लिफाफ में सिकड़लोॅ
सुख सेॅ रात काटतेॅ प्राणो लेॅ?
वै ठां जावोॅ की पारेॅ?
हाय शिशिर तेॅ रात बितावै छै
झोपड़िये मेॅ
नै जंगल मेॅ बितावै छै
नै महलोॅ मेॅ।