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घिरि-घिरि आवै सरंगोॅ में बदरा / दिनेश बाबा

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घिरि-घिरि आवै सरंगोॅ में बदरा
पुरबा मचावै छै शोर रे
आस लगैली, दुआरी पर ठाढ़ी
हेरै छियै चहुं ओर रे।

पिया हमरोॅ परदेशोॅ में बसलोॅ
कब ऐथिन हुनी हँसलोॅ-हँसलोॅ
नैं देलखिन कोनो चिट्ठी-खबरिया
कुछ नैं चलै छै आबेॅ जोर रे।

जाय खनी आपन्है खैलकिन किरिया
ऐथिन जल्दीये अबकी बेरिया
असरा दिलाय केॅ, मन भरमाय केॅ
देरी करलक चितचोर रे।

भादो मास अन्हरिया गुज-गुज
बेकल मन में होय छै उज-बुज
करवट फेरी केॅ रात तेॅ काटलौं
केन्हौं नैं कटै छै आबेॅ भोर रे।

झम-झम-झम-झम मेघबो बरसै
ठनका ठनकै छै, मलका मलकै
जना चमकै असमान में बिजुरी
ओन्है तड़पै जिया मोर रे।

बीच लहर जना डोलै नैय्या
हू-हू करी बोलै पुरवैय्या
बिरह-व्याकुल गात भेलोॅ छै
अगन जगावै पोरे-पोर रे।

पाती लिखै छी जल्दी अैय्यै
आरू परतिक्षा अब नै करैय्यै
हम छी अभागिन तोर बिरहिनियाँ
भरी-भरी आँखी में लोरे रे।