मम्मी एक बहिन लानी दे / दिनेश बाबा
मम्मी एक बहिन लानी दे
नैं तेॅ हम्में खैवौ नैं
नैं पढ़वौ, नैं लिखवौ हम्में
इस्कूलो भी जैबौ नैं।
बड़ी नहीं तोॅ छोटी लाय दे
खेलवै साथ, खेलैवै हम्में
कभी चिढ़वै, कभी कुढ़ैवै
हँसवै आरू हँसैवै हम्में।
रुसला पर कत्तेॅ नी खिलौना
दै केॅ खूब मनैवै होकरा
आपनोॅ कुड़िया के पैसा सें
टॉफी खूब खिलैवै होकरा।
पहिलोॅ पहिलोॅ बेर बहिनियाँ
जहिया आपनोॅ मूँ खोलतै
आपनोॅ सुन्दर मूँहोॅ सें जब
भैय्या-भैय्या ऊ बोलतै।
सोचें केतना अच्छा लगतै
हम निहाल होय जैवै तखनी
जब राखी हाथोॅ में बान्हतै
फूला नहीं समैबै तखनी।
बिना बहिन के लगै छै सुन्नोॅ
एतेॅ बड़ोॅ ई घर-संसार
दादी कहीं नी तों पापा सें
दियेॅ बहिन के एक उपहार
सच में तभिये अपना कन
राखी केरोॅ मनतै त्योहार।
बढ़तै प्यार सब्भे लोगोॅ में
स्नेह के हँसी-ठिठोली में
आखिर एकदिन विदा भी करवै
बहिन केॅ घरोॅ सें डोली में।