भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चनरमा सां चमकैवै / श्रीकान्त व्यास
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:15, 3 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीकान्त व्यास |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रोजे इस्कूल जैबै आरो मन सें पढ़वै,
बच्चा सिनी सें आबेॅ नै माय हम झगड़वै।
गुरुजी के सब बातोॅ केॅ धियान सें सुनवै,
इस्कूली में पढ़तें बकती आँख नै मुनवै।
आदर गुरुजी केॅ हम भरपूर देवै माय,
हिनका सिनी के दिलोॅ में बसी जैवै माय।
दुनियाँ भर में इस्कूली के नाम फैलैवै,
आपनोॅ नाम धाम चनरमा सां चमकैवै।
हम्मू पढ़ी-लिखी केॅ माय होय जैवै ज्ञानी,
हमरोॅ लिखैतै सोना अक्षर में कहानी।