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कभी कभी ये चाँद / वत्सला पाण्डेय

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कभी कभी ये चाँद
मुझे कोरा कागज़ लगता है
इस पर लिखना चाहती हूँ मैं
प्यार, प्यार, प्यार, प्यार
अनंत बार...
पर नीली रोशनाई से नहीं
सतरंगी स्याही से
पर ये क्या
सात रंगो से
लिख तो आई थी मैं प्यार
पर ये तो फिर से श्वेत है
मुझसे पहले भी
लिखा गया है इस पर प्यार
इसके कोने कोने में लिखा है प्यार
छोटे बड़े तमाम
अक्षरो से मिलकर
लिखा है प्यार
अब मुझे पढ़ना है इसे
ये कोरा नहीं है
इसके कण कण में
लिखा है प्यार
बिलकुल मेरे मन की तरह
जो तुम देख नहीं पाते
पढ़ नहीं पाते
प्यार, प्यार, प्यार, प्यार
अनंत बार...