भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाग रे बगिचबा / श्रीस्नेही
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:28, 7 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीस्नेही |अनुवादक= |संग्रह=गीत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बागेॅ रे बगिचबा कुहुके कोइलिया
धरती पेॅ बरसै अंगार!
आमेॅ महामोद करै गमकै दुपहरिया,
टपेॅ-टपेॅ चुऐ मधु-धारेॅ रे बगिचबा
धरती पेॅ बरसै अंगार!
गामऽ के बुतरुआ बतासऽ नहीं बूझै,
झुलबा लगावै डारे-डार रे बगिचबा,
धरती पेॅ बरसै अंगार!
सुतलऽ धोरैया पीपरऽ के छैयाँ,
भैंसिया पगुरावै छै बैठार रे बगिचवा,
धरती पेॅ बरसै अंगार!
अंकुरी भरलऽ डलिया शोभै पनसल्ला,
चुरु-चुरु खाढ़े पानी पीयै रे बटोहिया,
धरती पेॅ बरसै अंगार!