भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुल्हा के चिट्ठी... / श्रीस्नेही

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:39, 7 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीस्नेही |अनुवादक= |संग्रह=गीत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सावनेॅ-सावनेॅ साल गुजरल्हौं कहियो केॅ हम्में ऐलिहौं नै!
नूनू के माय, तोहें दुःख नै मानिहऽ अबकी भादो चुकमौं नै!!
भोरे उठै छऽ, बोढ़ा करै छऽ, भनसा घऽर फेरू जाय छऽ!
वांसिये मुँहें नबला बरेऽ पेॅ माय केॅ नहबाय छऽ
हेकरा सें बढ़ी केॅ नै कोय पूजा, हेकरा तोहें छोड़िहऽ नै!
नूनू के माय, तोहें दुख नै मानिहऽ अबकी भादो चुकमौं नै!!
नैतें-घोतें बेर नै हुहौं जल्दी सें काम पूराय लेॅ!
भोजन करिकेॅ होथै दुपहरिया उखड़ी सें देह बनाय लेेॅ!!
सूपऽ समाठ तोर्हऽ जीवन छेखौं तोहें कसरत छोड़िहऽ नै!
नूनू के माय, तोहें दुःख नै मानिहऽ अबकी भादो चुकभौं नै!!
बोरसी-गाड़ी आगिन राखिहऽ टोला-परोसा सें रैथौं नै काम!
आपनऽ घरऽ के बात नै उगलिहऽ रहिनै जैभेॅ कौड़ियऽ के दाम!!
काम्हैं बनैथौं तोर्हा रानी हमरऽ मंतर भूलिहऽ नै!
नूनू के माय, तोहें दुःख नै मानिहऽ अबकी भादऽ चुकमौं नै!!