भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
के तोरोॅ ई रूप गढ़लकौं / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:57, 8 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
के तोरोॅ ई रूप गढ़लकौं।
आँखी में की मीन बसै छौं
ठोरोॅ पर की फूल हँसै छौं
की गल्ला, छाती आमन में
गोकुल केरोॅ रास रसै छौं
भौंह कैन्हें ई हेनोॅ बंकिम
की खंजन नें कुछू कहलकौं?
के तोरोॅ ई रूप गढ़लकौं?
कंठ तोरोॅ की कोयल छेकौं
देह छिकौं कि शतदल छेकौं
पान जना मुँह, चन्दन ही तेॅ
वै पर केश; घटा-दल छेकौं
ओकरा-ओकरा कविये पैलां
जे-जे तोरोॅ रूप पढ़लकौं।
के तोरोॅ ई रूप गढ़लकौं?