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कुछ नै चाहौं साथ रहोॅ बस / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
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कुछ नै चाहौं साथ रहोॅ बस।
आवेॅ दौ जतना दुख आवेॅ
मृत्यु निकट आवी दहलावेॅ
दिन केॅ माया सें की डरना
तोहें मन के बात रहोॅ बस।
कत्तो रात अमावश के छै
रावण केरोॅ मुँह दश के छै
ई वीजूवन नापी लेवै
तोंय ई जोरिया रात रहोॅ बस।
काया के संग प्राण अमर छै
तेॅ, बोलोॅ कि केकरोॅ डर छै
पर जिनगी के उमस के हरतै
तोंय बरलॉे बरसात रहो बस।