भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ नै चाहौं साथ रहोॅ बस / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:58, 8 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ नै चाहौं साथ रहोॅ बस।

आवेॅ दौ जतना दुख आवेॅ
मृत्यु निकट आवी दहलावेॅ
दिन केॅ माया सें की डरना
तोहें मन के बात रहोॅ बस।

कत्तो रात अमावश के छै
रावण केरोॅ मुँह दश के छै
ई वीजूवन नापी लेवै
तोंय ई जोरिया रात रहोॅ बस।

काया के संग प्राण अमर छै
तेॅ, बोलोॅ कि केकरोॅ डर छै
पर जिनगी के उमस के हरतै
तोंय बरलॉे बरसात रहो बस।