भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पाती लिखी-लिखी की करलौं / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:00, 8 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पाती लिखी-लिखी की करलौं?
मन के दुख हल्का की होलै
ऊ तेॅ आरो बढ़ले गेलै,
हेनोॅ आग, लपट ई हेनोॅ
मन-प्राणोॅ सें खाली खेलै;
आस बचावै में ही खाली
एत्तेॅ, ई रं हम्में जरलौं।
मन के ताप मने में रहलै
कुछ-कुछ लोर बनी केॅ बहलै,
बाकी दिल में सेंध लगावै
करवट की लौ; काा दहलै;
आबेॅ कोन डरावै भय छै
जेकरा सें कहियो नै डरलौं।
आगू कुछ नै पीछू ही नै
हमरा सें कोय जिनगी छीनै
तन बोलै छै, ”प्राण बचावै“
मन बोलै छै ”हाय, कभी नै।“
बीच भँवर में आवी गेलौं
हेनोॅ की दरिया ई तरलौं!