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तोरे कहाँ भरोसोॅ रहलै / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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तोरे कहाँ भरोसोॅ रहलै
प्राण यही सोची केॅ दहलै।

ई दुनिया में प्रेम-नेम सब
कुछ देरी के हँसी खेल रं,
कुछ क्षण उमड़ै, कुछ क्षण, छिटकै
बादल-बिजली जकां मेल रं;
बाकी तेॅ आँसू के बोहोॅ,
केना केॅ ई जी दिल बहलै?

प्रण लेवोॅ, विश्वास दिलैवोॅ
खेल-खिलौना, हुक्का-पाती,
साँझै जरतै, साँझे बुझतै
मन के मोह; जेना संझवाती
भीत बनैलेॅ छैलां ऊ जे
राते रात केना केॅ ढहलै?

चंचल जग में की छै इस्थिर
नै प्राणी, नै प्रेम-नेम कुछ
सबके एक विलय में लय छै
पूछोॅ नै तों कुशल-क्षेम कुछ;
भरम टूटथैं थुकचोॅ छै मन
कोय्यो विधि सें ई नै बहलै।