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कत्तेॅ सूनोॅ जिनगी ई छै / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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कत्तेॅ सूनोॅ जिनगी ई छै!

तों छेलौ, तेॅ सब कुछ छेलै
तखनी नागफनी तक फूलै
इखनी कोय रातिये आवी
फूले की, कलियो तक बीछै
कत्तेॅ सूनोॅ जिनगी ई छै।

रोम-रोम चन्दन वन छेलै
काँटो तक इन्द्रासन छेलै
इखनी चन्दन-पलंग, बिछौना
सुख बदला दुख केॅ ही नीछै।
कत्तेॅ सूनोॅ जिनगी ई छै।

पहिलौं रात अमावश आवै
तहियो दूधोॅ सें नहलावै
इखनी तेॅ चंदै के ऊपर
की रं पुतलोॅ ठो करखी छै
कत्तेॅ सूनोॅ ई जिनगी छै।