भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देश मजूर किसान पर छै / रामदेव भावुक
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:35, 8 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदेव भावुक |अनुवादक= |संग्रह=रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैयो के मोन मरल मोरी पर, बाबू के जरल धान पर छै
घर भरि छै चिन्ता मे डूबल, भैया के मोन मचान पर छै
हाथ भेलै खाली बाबू के
घर के पूँजी-पगहा गेल
खेती के चलते सेतो मे
करजा-पैंचा सगहा भेल
गहुम पिसबै लेॅ बाबू जाइ छै, भैया पान दोकान पर छै
जेठ मे धेनु गाय बिसुखलै
सावन मे भैंस एकौर भेलै
ठढ़की जरसी बछिया करकी
भरलॅ भादो बउर गेलै
एगो बैल तीन गो कररु, असकर बाबू के जान पर छै
बोरिंग बांझ भेलै नहर के
मांग के सिन्दुर सून भेलै
नदी गवाही छै तलाब के
सामने खेत के खून भेलै
बाबू के वस एक भरोसा, हिम्मत के भगवान पर छै
बाबू के जिनगी मे ऐसन
बहुते बाढ़-सुखार भेलै
हिम्मत नै हारलखिन कहियो
मौसम के भले बुखार भेलै
बाबूजी जानै छै आपन देश, मजूर-किसान पर छै