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की करतै कालोॅ रोॅ तक्षक-करैत? / अमरेन्द्र

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की करतै कालोॅ रोॅ तक्षक-करैत?
तन जों परीक्षित छै मन शुक पुरहैत

एक बीन बाजै छै बरसैं सेँ-एक रस
रोम-रोम बान्हीं केॅ करनें छै हमरा बस
बीनोॅ संग झूमै छी, हेकरोॅ नै चेत।

जेठोॅ पर गिरलै आषाढ़ोॅ रोॅ हाथ
बरी गेलै कातिक अमस्या रोॅ रात
पानी रँ बही गेलै आगिन रोॅ रेत।

रेतोॅ रोॅ बीचोॅ सेँ गजुरै छै गीत-गीत
गूँजै बहियारी में एक राग-‘प्रीत-प्रीत’
भटियावै मन-बीजू वन, खेते-खेत।

केतकी फुलैलोॅ छै-सौंसे वोॅन गमकै छै
सात सुरोॅ वंशी पर पायल खूब झमकै छै
हाथ जोड़ी खाड़ोॅ छै उमरी रोॅ प्रेत।

-आज, पटना, अपै्रल 1999