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यहैं कहीं कसलोॅ छै देवता तिजोरी मेँ / अमरेन्द्र

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यहैं कहीं कसलोॅ छै देवता तितोरी मेँ
काँटोॅ रँ लोर गड़ै आँखी रोॅ कोरी मेँ।

आबेॅ नै क्षत्री कोय, बाभन कोय-साहू सब
घूमै चनरमा रोॅ भेषोॅ मेँ राहू सब
मेमियावै बकरी रँ-शील बँधी डोरी मेँ।

डंडी पर राखी सब गीता तक तौलै छै
वै पर भी ई देखोॅ रामे-रामे बोलै छै
राज-भोग लिखलोॅ छै ठिक्के बरजोरी मेँ।

मैना देखावै नै देखै छी खोतै
माँड़ी कबूतर रोॅ की होलोॅ होतै
साँपोॅ सेॅ चेन्होॅ छै देहरीये ओरी मेँ।

नै बुझतौ कोय्यो, तोंय कत्तो वेद बाँचोॅ
‘अमरेन यश पावै लेॅ धाँगड़ रँ नाँचोॅ
रमलोॅ समैये छै इखनी अघोरी मेँ।