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हंस / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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हंस, रुई के ढेर लगै
जल में एकरोॅ सैर लगै।

पार हिमालय से आवै छौ
केकरो नै मन हर्षावे छौ।

चोंच तोरोॅ नारंगी रं
मेदी तोरोॅ संगी रं।

कीट केना केॅ खैलोॅ जॉव
केन्होॅ छौं मटमैलोॅ पाँव।

की हमरे रं जीयै छोॅ?
दूध की सच्चे पीयै छोॅ?