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चतुरन के चतुराई (गीतिनाट्‍य) / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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(मंच पर जंगल के दृश्य। एक दिशोॅ सें एक भालू आवै छै आरो जे कुच्छू देर लेली नाँच करी, फेनू दर्शक दिश मूँ करी केॅ कहना शुरू करै छै)

भालू: कथा सुनोॅ पंचतंत्रोॅ के
बुद्धि-बल के मंत्रोॅ के
बहुत पुरानोॅ समय के बात
एक वनोॅ में एक्के साथ
ढेरे हाथी रहै छेलै
हमरा नानी कहै छेलै।

(कहतें-कहतें भालू दर्शक सिनी के आगू सें हटी केॅ मंच के बाँया दिश होय जाय छै। दाँया दिश सें चार-पाँच हाथी आवी केॅ मंचोॅ के बीचे-बीच खेल-कूद करेॅ लागै छै। भालू फेन आगू आवी केॅ बोलै छै)

भालू: सब हाथी में बड़का मेल
करै तेॅ एक्के साथें खेल
गाछ-बिरिछ सब मिली केॅ खाय
पानी पीयै तेॅ खूब अघाय
लेकिन विधि ही छेलै वाम
सुखलै पोखर ठामे-ठाम
ऊ अकाल रोॅ पड़लै छाँव
उजड़ी गेलै जंगल-गाँव।

(मंच पर अंधकार फैलै छै। फेनू प्रकाश होय छै आरो वहाँ पर ठूँठ खड़ा दिखाय पड़ै छै। हाथी सिनी उदास खाड़ोॅ छै)


भालू: हाथियो सबके चिन्ता बढ़लै
मिली-जुली सब आगू बढ़लै
आपनोॅ राजा लुग ऐलै
एक्के साथें सब बोललै।

(सब हाथी मंच पर घूमेॅ लागै छै। एक दिश सें एक हाथी आवी केॅ बैठी जाय छै। झुण्ड में सें एक हाथी बोलना शुरू करै छै)


हाथी: कहै लेॅ ऐलौं आपनें लुग
बीती गेलै सुन्दर युग
हेनोॅ कभी नै देखलौं दिन
ई अकाल पर है आगिन।

(भालू आगू बोलै छै)

भालू: राजा बोललै धीरज सें

हाथीराज: अभी बताय छौं कि कैसें
हमरा सब जीयेॅ पारौं
हेना नै हिम्मत हारौं
बगले में एक आरो वोॅन
चलोॅ लगैलेॅ बाँही मोॅन
वहाँ छै पोखरो बड़का गो
बात छै सब्भे सुन्दर ठो।

(भालू फेन आगू आवी केॅ बोलना शुरू करै छै। पीछू में हाथी सिनी सूढ़ हिलैतें घूमै छै)

भालू: राजा रोॅ सब बात सुनी
माथा पर लै धूल-धुनी
बचलोॅ-खुचलोॅ जे मिललै
वही वोॅन दिश सब चललै।

(सब हाथी एक दिश चललोॅ जाय छै। मंच पर फेनू अंधकार फैलै छै आरो रोशनी के ऐत्हैं हरा-भरा वाला जंगल दिखाय पड़ै छै। एक दिश सें भालुओ दर्शक के सामनां आवै छै)

भालू: वहाँ जाय ई देखै छै
जंगल-पोखर ठिक्के छै
गदगद भेलै हाथी मोॅन
रौंदेॅ लागलै पोखर-वोॅन।

(एक दिश सें वहेॅ हाथी के झुण्ड आवै छै आरो आनन्द सें चारो दिश घूमेॅ लागै छै। मंच के चारो दिश सें खरगोश आवै छै, आरो डरोॅ सें भागी जाय छै)

भालू: ई देखी सबटा खरगोश
हड़कै, उड़लै सबके होश
सब के किस्मत जों फुटलै
बात विचारै लेॅ जुटलै
खरगोशोॅ रोॅ राज्होॅ तक
सब रोॅ मन में एक्के शक।

(हाथी सिनी उछलतें-कूदतें एक दिश चललोॅ जाय छै। मंच पर खरगोश सिनी के जुटौन होय छै)

एक खरगोश: हमरोॅ ई पुश्तैनी वोॅन
हमरोॅ जंगल, हमरोॅ धोॅन
कहाँ सें आवी हाथी ई
मिली-जुली सब साथी ई
हमरोॅ पानी सुखावै छै
हमरोॅ जिया जरावै छै।

खरगोशराज: खरगोशोॅ रोॅ सुनोॅ समाज
हम्में हाथी लुग जैवै
रस्ता ढूंढलै सें पैवै।

(सब खरगोश उछललोॅ-उछललोॅ एक दिश चललोॅ जाय छै। भालू दर्शक दिश आवी केॅ बोलेॅ लागै छै)

भालू: ऐलै जबेॅ इंजोरिया रात
खरगोश-राज बुझी केॅ बात
चललै हाथी राजा कन
गोड़ चलावै दन-दन-दन।

(मंच पर एक हाथी आवी केॅ बैठै छै। खरगोश सिनी वहीं आवी केॅ खाड़ोॅ होय जाय छै, जे सिनी कॅ देखी केॅ हाथी सूँढ़ उठाय केॅ पूछै छै)

हाथी: के तोय? की छौं काज

(खरगोशराज हाथी के सामना आवै छै आरो जोरोॅ सें उछली हाथी सें कहना शुरू करै छै)

खरगोशराज: सुनोॅ-सुनोॅ तोहें हाथी होय
ऊ कैलें जे करै नै कोय
‘चतुरन’ हमरा बोलै सब
तोरा सें छी केन्हौं नै दब
हम्में दूत चनरमा के
जानै छै ई सच सब्भे
चाँद घरोॅ में करौं निवास
जेकरोॅ तोहें कैलैं-नाश
पोखर जेकरा रौंदै छै
वही जेकरा रौंदै छै
वही चनरमा घोॅर अरे
गुस्सैलोॅ छौ चन्द्र देवता
लागतौ तोरा अभी पता
नै तेॅ जाय केॅ माँग क्षमा
नाशे छौ तोरोॅ सब धुम्मा।

(खरगोश के बात सुनी केॅ हाथीराज काँपेॅ लागै छै आरो दोनों गोड़ साथें सूँढ़ खरगोश के आगू करी कहना शुरू करै छै)

हाथीराज: जानै छेलियै नै ई राज
आबेॅ केन्हौं बनावोॅ काज
लै चलोॅ हमरा देव नगीच
हमरोॅ रँ नै पापी नीच
भूलोॅ आबेॅ सबटा दोष
हमरोॅ तेॅ उड़लोॅ छै होश।

(खरगोश सिनी हाथी सब केॅ लेलेॅ एक दिश चललोॅ जाय छै। मंच पर अंधेरा फैलै छै, फेनू प्रकाश के होथैं हाथीराज एक पोखर के सामना खड़ा दिखै छै, जेकरा में चाँद के बिम्ब पड़ी रहलोॅ छै। भालू दर्शक के सामना आवी केॅ कहना शुरू करै छै)

भालू: आरो तबेॅ लै हाथी साथ
बनलै खरगोश के बात
रात पूर्णिमा के झक-झक
हाथी देखै छै टक-टक
पानी में चाँदोॅ के छाँई
इस्थिर होन्हें चाँदे नाँई

सूंढ़ उठाय केॅ हाथी नें
ओकरोॅ संग के साथी नें
कैलकै छाँई केॅ परनाम
खरगोशोॅ के बनलै काम
देखी केॅ करतें परनाम
बोललै चतुरन जेकरोॅ नाम।

(आपनोॅ बात कही केॅ भालू एक दिश जाय केॅ बैठी रहै छै। हाथी खरगोश के राजा दिश देखै छै, तेॅ चतुरन खरगोश बोलना शुरू करै छै)

खरगोशराज: अभी समाधि में हमरोॅ देव
नै तेॅ मूड़ी लेतियौं छेव
भाग यहाँ सें जल्दी जो
एकरोॅ पैहिले देव जगौ।

(खरगोश के बात सुनथैं हाथी जोर सें चिग्घाड़ै छै, जेकरोॅ आवाजोॅ पर सब हाथियो चिग्घाड़ै छै। फेनू ‘भागो-भागो’ कही केॅ मंच पर एक दिश दौड़ी पड़ै छै, जे देखी केॅ सब खरगोश भी खूब उछलेॅ-कूदेॅ लगै छै। ई देखी केॅ भालू भी दर्शक के सम्मुख आवै छै आरो नाँचतें हुएॅ सबकेॅ बोलै छै)

भालू: थर-थर करतें हाथी राज
लै केॅ आपनोॅ जत्था-साज
भागलै आपनोॅ जत्था-साज
भागलै आपनोॅ वाला वोॅन
खरगोशोॅ रोॅ बचलै धोॅन।