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चाँद / अमरेन्द्र

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चंदा मामा आरे आवोॅ
नदिया किनारे आवोॅ

पानी मेॅ नहैवोॅ दोनों
गीत खुशी रोॅ गैवोॅ दोनों

तोहरोॅ गोरोॅ-गोरोॅ देह
धूल सें होथौं कारोॅ देह

यही डरेॅ नै आवै छोॅ
पन्द्रह रोज सतावै छोॅ

चंदा मामा आवोॅ नी
खिस्सा कोय सुनावोॅ नी

माय के देलोॅ रोटी केॅ
दूध सेॅ भरलोॅ बाटी केॅ

बड़ी छिपाय केॅ राखलेॅ छी
अभियोॅ तक नै खेलेॅ छी

चंदा मामा आवी जा
आरो दूर नै भागी जा

आवोॅ, खैवोॅ रोटी केॅ
दूधोॅ आधोॅ बाँटी केॅ

मिली-जुली केॅ साथोॅ मेॅ
हाँसवोॅ-खेलवोॅ रातोॅ मेॅ।