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वैशाख / अमरेन्द्र
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वैशाखोॅ के अन्धड़-लू
हवो बहै छै हू-हू-हू
झुलसी गेलै सौंसे मूं
बैशाखोॅ के अन्धड़ लू।
केकरोॅ बिन के छटपट छट?
की जाय गल्ला में गट-गट?
की पावी केॅ सब्भे खुश?
कौआ गगलै; हा-हा हुश?