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भयानक डर / प्रशांत विप्लवी

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गाजा के ऊपर बरस रहे
बमों के धमाके
गोलियों की तर्रतर्राहट
मेरे घर तक नहीं पहुँचती
उनकी चीखें
उनका आर्तनाद या डर से भागते पैरों के आवाज़ भी
नहीं पहुँचती
उनके क्षत-विक्षत लाशों की तस्वीरें
फिल्माए गए दृश्य
पहुँचती है हमारे पास
वो सोचते हैं
हमें डराने के लिए इतना ही काफी है

हम डर रहे हैं इनदिनों
लेकिन उनके डराने से नहीं डर रहे
हमारा डर और भी भयानक है

बच्चे जो दुबके हैं घर के किसी कोने में
बूढ़े जो लाचार है भागने से
लड़कियां / औरतें जो हैरान हैं
पर्दे में रहे या बेपर्दा ही भाग ले ज्यों-त्यों
अंतिम सांस गिनने वाला वह शख्स
जो सोचता होगा ये उसका अंतिम डर है
पथराये आँखों से दूर तक आकाश को घूरता कोई परिंदा
बारूद और धुएं में अपना आकाश ढूंढ रहा है
मासूम बच्चे जो गाजा को ही पूरी दुनिया मानते हैं
वो सुनहरी बालों वाली चुलबुली लड़की
जो कई दिन से पड़ोस के गिरे मकान की दीवार पर
लटका कमीज़ देख रही है
कमीज घर के सबसे छोटे बच्चे का है
उन सब से कहना चाह रहा हूँ
हम पूरी तरह से डरे हुए हैं
सिर्फ इस बात से
कि एक खबर तुमसे छुपाई जा रही है
कि गाजा और दुश्मन देश के अलावा भी कई देश है
जो रोज़ दुआएं मांग रहे हैं तुमलोगों के लिए
तुमलोग जिन्दा बचे
तो एक बार और भरोसा रखना दुआओं पर
इन दुआओं से भरोसे के टूट जाने का
एक भयानक डर
इन दिनों मंडराने लगा है
गाजा के छत पर