भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सरकारी बिल्ली / दिनेश बाबा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:29, 11 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश बाबा |अनुवादक= |संग्रह=हँसी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे गे सरकारी बिल्ली
कहिया तों जैबे दिल्ली
सूतै छैं डिब्बा में तों
बंद करी लै छैं किल्ली
चितकबरोॅ छौ चरित्तर
जैसें कुतिया रो पिल्ली
मंू तोरोॅ बड़ा लुभौना
जाय छैं जब हिल्ली-मिल्ली
सब नें अब बूझी गेलौ
करतब तोर शेखचिल्ली
करलें तों बड़ी कमाई
अंटी अब होतो ढिल्ली
पांच बरस के बादे
उड़तौ जब तोरो खिल्ली