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दूसरी किरण / सवर्णा / तेजनारायण कुशवाहा

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एक सांझी पहर
रंग पड़तें धुसर
सूर्य छाया सहित
खेल खेलै ललित
चली ऐलै वहाँ
सृष्टि खेलै जहाँ।

देश लागे हरा
चित्त भाबै बड़ा
ना धिना ता तिना
गतिमना यति बिना
सरि सरस्वती बहै
सुख कहानी कहै
देवता के कथा
देवता के व्यथा।

हर किसिम के विटप
लगै जौं कोय तप
वहां कैलै खड़ा
समय से सुनहरा

आज जामुन लदल
लदल झारी सजल
नित झुलावै पवन
फूल-फूल भन-भन
गीत गाछौ भँवर
स्नेह से सजि भंवर
नाचि के तितिलिया
नित रिझावै जिया।

लाल रंग चूनरी
दिशा अपसरो
चान उगते घरी
पहिरलक सुन्दरी।

पोखरी में अमल
दल समेटै कमल
कुमुद हौ दिसिं खिलै
कुमुदिनी लै हिलै

घौंसला में विहग
मौन भेले चहक
तट पपीहा पिऊ
पिऊ बालै जिऊ
मोर नाचै थिरक
मोरनी संगे छक

हिने भेल संयोग
हुने भेल वियोग
सूर्य-छाया सटै
कोक-कोकी हटै

यामिनी सरकलै
चाननीं ढरकलै
जल हिलोरा उठै
चान छाया रुठै
गोद लेन्हें छहर
वैं मनावै लहर

देखि गाछ चिनार
रवि छिपैलक डार
तान भरकै तिया
जिया भरि-भरि पिया
गान लगलै सुनै
मने संज्ञा मुनै:

”कौ सुन्दर हे पिया, लगै छी
तोरे छेनी चोटोॅ से अनगढ़ पत्थर पर हमें सजै छी।
मुसुकी ओठो में अंखियो में
सभे शक्ति के गति बतियो में
पिय, अंगना के फूल सिनी में सुरभि रूप में हमें बसै छी।

तोरे यौवन के बिकास में
तोरे मानस के विलास में
तोरे ऊ निर्मेघ गगन में स्वर्गंगा बनि हमें लसै छी।

मनरंजन के नै छौ साधन
खाली तोरे गीत प्रसाधन
गिरि में, वन एकांत विजन में, झरना में रोजे किलकै छी।

की सुन्दर है पिया, लगै छी
तोरे छेनी चोटोॅ से अनगढ़ पत्थर पर हमें सजै छी।“

सूरज सुनि के गीत तिया के
गैलोॅ सुन्दर ढार सें
उठलै झूमि उतरलै नीचू
वै चिनार के डार सें
आगू बढ़ि के मस्ती में
छाया से बोललै प्यार सें
‘की सुन्दर हे’ सूर्य खिलैलक
सोन जुही के हार सें

”पिय, कैन्हें सिहरै येहो मन?
तोरे मधुमय आलिंगन सें
तोरे मधुमय परिभ्भन सें
पिय, कैन्हें भिहरै ये हो मन?

बिजली मेघा बीच बसै छै
परिहासो के समय हंसै छै
पिय, कैन्हें यौवन में स्पन्दन?

बैं सागर सें सरिता मिललै
पाहुन हे, ओकरा सें खिललै
पिय, कैन्हें नैना उन्मीलन?

पुलकित पाबी पांव महावर
तोरे मंजुल कर सें काजर
पिय, कैन्हंे छावै कुन्तल घन?

पिया, हमें युग-युग के माया
जड़-जंगम के छी नित छाया
पिय, कैन्हें पौना में नर्त्तन?“

चकित हरिनी-सें सहमले
गगन पर खुलि के उतरि के
मौन पाहुन लें सजनि, मधुकलश छलकैतें रहें रे!

प्रेम मधु सब कलि लुटाबै
कहै छै आँखी लजीली
प्यार के गलियो सुहावै
लिखै छै चिठियो रंगीली
सुभग बाँहीं में समेटी चाह बिलमैतें रहें रे!

सजनि, तोरे स्नेह पाबी
मन दिया-नाखी बरै रे
मिलन-परिरभ्भन-समय
चन्दन सजल धुमना जरै रे
तों गमकतें केश में ई चित उलझैतें रहें रे!“

”जे कहें स्वीकार छै
बीन पर सुधि सजि रहल जे ऊ प्रणय-व्यापार छै।
प्यार के हम गीत गैलों
गीत में तोरा रिझैलों
देव, बंशी में सजै छै कामना के ज्वार छै।

छूट कोनो समय घूमें
अंक में पड़ि खूब झूमें
रे यहाँ नैं कोय पहरा खुलल आंगन-द्वार छै।

धाय हम्में आय मिललों
लोक में की किसिम खिललों
हमें जानै छी जगत में बस चिरंतन प्यार छै।“

”कर्म-पथ के छी बटोही
कामना आबी हिलावै
दै झकोरा लड़खड़ावै
बाट से हमरा हटाबै।

कामना के दबैला से
लोक ई आचार पावै
सच कहौं इच्छा दबैलें
स्वर्ग के दरबार आबै

पुण्य आरु पाप, धर्म-
अधर्म, अनुचित-उचित सगरे
कामना के अंत सें सब
एक सें झलकाय उजरे।“

”जग इच्छा मिटैलें नैं मेटै पिया
इच्छा सबल न निर्बल होबै कोनो रंगे उगै हिया
जड़ से नै नासो होवै छै कोनो कारज में रसिया
वैं अपने रसता पर आवें जलतें चित्त बिवेक-दिया।“

संझोती सजैलें,
देव के दिखैलें
पिया सूरजमुखी
पांव पड़कै झुकी
सुरुजें उठैलकै
सवर्णा चुमलकै
सुधबुध भुलैलै
दोनों हेरैलै।