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तीसरी किरण / सवर्णा / तेजनारायण कुशवाहा

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”जीएं! तों कहां संे ऐलैं अंगबोली में सुनेलें
सूर्य घरे की तों ऐलैं बोलें हे सामरिया
लागै छै चीन्हली रहें या देखली जहें-तहें
चाहे छें की कहें-कहें बोलें हे सामरिया
काम की छै भोरे-भोरे की हसैं छै थोरे-थोरे
पुष्ट देह पोरे-पोरे बोलें हे सामरिया
कोय लोक नारी याकी देवनारी ऐलैं बादी
केना के अकेले द्वारी बोलें हे सामरिया

”नाम संज्ञा अभिधान बुद्धि, संकेत, निशान
हाव-भाव, चेत, मन, होश कहलाबै छी
हमरो प्रयोग होय वस्तु नैत जन कोय
नाम ले सुनो हे लोय दुनियां के भावै छी
हमरो विकारी रूप, गुण-स्वभाव-स्वरूप
लोगो चीजोर अनूप परख करावै छी
भाव-गुण, जाति-धर्म-व्यक्ति, जेर, द्रव्य अन्न
सभेटा पदार्थ कर मर्म बतलावै छी।

रूप के कटोरी हिन्ने-हुस्ने सब ओरी
हमें सुरुज के जोरी भक-भक गोरी-गोरी छी
गुदगरी-बुधगरी वन के तित्तोॅ निबोरी
जब के मिट्ठ पिठौरो पिट्ठोॅ सौंरी-सौंरी छी
छी बिहान के पिछोरौ मांझ के नुनु के लोरी
कोरी-कोरी रात के बिहाग भोरो-भोरी छी
नव रंग बोरी-बोरी होय के ओकरी-तोरी
रोज-रोज छोरी-छोरी घूरै डोरी-डोरी छी

विश्वकर्मा के कुमारी कश्यप के छी दुलारी
बिवस्वत् प्यारी वारी नारी सुकुमारी छी
बहतें बतास-तारी मेष-छाग धारौ-धारी
आसमान के किनारी धरती के सारी छी
गाछ-बिरिछ के डारी लता-गुल्म पत्ता-झारी
पत्थर-पहाड़ी नदी-सागर के वारी छी
घर के झंझन थरी खेत-खरिहान-क्यारी
पहुना सभे दुआरी वो सोहर-गारी छी

मानव के तारै लेन्हें दानव के मारै लेन्हें
अमृत के झारै लेन्हें कत्ते रूप धारै छी
लोक के सुधारै लेन्हें नया बीया पारै लेन्हें
कारे-कारे मेघा बनि मीठा पानी ढारै छी
रे अन्हार टारै लेन्हें रात उजियारै लेन्हें
सरंग में चान के तारा के दिया बारै छौ

एक के उजारै लेन्हे दोसरा के छारै लेन्हें
पारै लेन्हें पिया आगू रोदना पसारै छी।।
देहरी उगली आस श्मशान के निरास
बन-बहियार केरोॅ चास छी भरी-भरी।
शरत् के कास-डास बसंती बिलास-हास
वो हुलास बारोमासी घास छी हरी-हरौ।
हिमालय के उचास समुन्दर के निचास
सृष्टि के विकास वो बिनास छी घरी-घरी
चौदहो विद्या-विभास चौंसठो कला-प्रकाश
शंकर तांडव-गौरी लास छी भरी-भरी।।

मुँह केरोॅ हमें पान पेट केरोॅ गेहूँ-धान
प्रानियो के प्रान मुसुकान छी कली-कली
रानी केरों देवठान राजा केरोॅ सतुआन
बुतरू के पूआ-पकबान छी भली-भली
कोईली के कुहू-गान तितली के लय-तान
पी कहाँ पपीहा मधुपान छी अली-अली
दानी दान मानी मान रमनी के नैना बान
उपमान तीर वो कमान छी बली-बली।।

पिया कहलों थोरा“ “हमें नै जानै छी तोरा
चल्ली जो पढ़ानै खोड़ा सुने हे सामरिया
हमरी बिहैया संज्ञा घरें छै सुबह-संध्या
सुरुज नै तोरोॅ सैयाँ सुने हे सामरिया।
आपनोॅ रूप बनैल्हें ऐली छै सिखाबै कैन्हे
समझें की जैन्हे-तैन्हें सुनें हे सामरिया
कैन्हें तों बाधै छै घेरा हमें नै पड़बी फेरा
लौटी जो आपनी डेरा सुने हे सामरिया?“

”राजा तोरोॅ रानी गंगा पानी नै भेलै कुपानी
मानोॅ तोहें नै बिरानी हेरोॅ हे हिया के दिया
तोहें ते निकासी देवोॅ हमें बनवासी भेबोॅ
लोगें सिनी कैन्हें नैकहतै दुर दुर छिया छिया

नैहरा सँ अयली यहाँ बिपत पड़ली महा
जैती जहाँ-तहाँ कहाँ बोलोॅ हे बोलोॅ हे पिया

चरती घास सैलानी पिबती हिमानी पानी
तोरी धानी केना के हे सहतों तोरोॅ जिया!“

”छोड़ैंनी बांधल धाड़ा ठगैले चलली बाड़ा
जल्दी जो आँखी सें आड़ा सुने हे सामरिया
अछरंग नै लगाहीं लावै नै पाप के छाँहीं
आरोॅ काँहीं देखैं जाहीं सुने हे सामरिया
तनियो विवेक नैछो नजरी ई धोखा दैछो
जेहे-सेहे सोची लैछो सुने हे सामरिया

कहै छियो एके बात तोछें डार हमें पात
लौटी जो उलटे लात सुने हे सामरिया!“

‘जो’ कहतें गिरलै संगे संग अंगना
नयना सें लोर दोन्हू हाथ सें कंगना।
सूरुज धनिया उठलै तब
चौखी ‘पिया-पिया’ जेना पपैया
देखि तिया-गति भेलै तहीछन
मौन सभे गछिया के पतैया
अश्वी के रूप धरी बन के
चललै परी संज्ञा गोसैयाँ के पैयाँ
धूरि के सैयाँ के हेरै बहू
ठुकैरली बहू दिसिं घूरि के सैयाँ।