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छट्ठी किरण / सवर्णा / तेजनारायण कुशवाहा

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आपनोॅ पिया के अश्व सरूप में पाबी
खुश भेली गोड़ लागी आ उठली गाबौ

”हे गोसाँय, तोरालें कठिन तप कैलों
धन्य हमें आज आपनोॅ पिया के पैलों
हे नैना के अधिराजा, प्रानियो के आँखी
सरंग के पार देखै छोॅ मने में राखी।

जीव-जन्तु जन के पाप-पुण्य हे पिया
अवलोकन करोॅ संसार के भेदिया
चर अचर में जीव, रक्षक ओकरोॅ
जन काम करै करि दरसन तोरोॅ
तोरोॅ किरन के प्रतिनिधि अश्व सात
पंछौ लाल पंछी उत्क्रोस कर मात।

आसमान में अनेक रंग वाला रत्न
तों भगाबै छोॅ बीमारी दुख दुःस्वप्न
दुनियाँ तोरा उजरोॅ आयुध कहै छै
मेघ-बरसा सें मित्र-वरूण ढकै
देवता-मनुष्य के प्रकाशक तों स्वामी
अंधकार के मिटाबै छोॅ हे द्रुतगामी

अग्नि वो मातरिश्वन् तोरोॅ प्रिय दूत
तोरोॅ उंगली पिया सोम क करै पूत।
मौज में रहलोॅ, तोरोॅ तिया लहरोॅ में
”तबे रहतिये दोन्हू पानी के तरोॅ में

से दिना हे नै करी सकलों पहिचान
संज्ञा, ओहो भूली जो हमरोॅ भूल जान
तोरा लें संज्ञा सुन्दरि सगठें जहान
शीत-घाम-बरसा सभे ऋतु समान
रानी हे, देह कदम्ब के मदिर गन्ध
आकुल-व्याकुल करे मन-भौर अंध।

तोरोॅ गीत गावै जंगल के गाछ-पत्ता
तोरोॅ गीत गावै मौमाछी मधु के छत्ता
तोरोॅ गीत गावै समुन्दर के तरंग
तोरोॅ गीत गावै येहो धरती-सरंग।

तोरोॅ गीत गावै नदी झर-झर धार
हर-हर गावै आर-पार के कछार
बरसा फुहार गावै, गावै छै बोछार
वन-बहियार गावै पत्थर-पहार।

उमर-टीकर परपटो मयदान
तोरोॅ गीत गावै छै तारा समेत चान
औरत मरद, बच्चा-बुढ़वा-सयान
तोरोॅ गीत गावै रानी, सीमा के जवान!

गीत गावै द्यौस, मित्र-वरुण-पूषन्
तोरोॅ गीत गावै विष्णु वो मातरिश्वन्
मरुत्गण, त्रित, इन्द्र, परजन्य आप
तोरोॅ गीत गावै रुद्र अज एकपाद।

तोरोॅ गीत गावै अग्नि, वृहस्पति, सोम
असुरो पुत्र सजाबै तोरा पर स्तोम
गन्धर्व, उर्वशी अप्सरा वो ऋभुगण
अत्रि, अंगिरस्, कण्वऋषि, अथर्वन्।

देवियो गावै छै पीन्हीं सड़िया सबुज
तोरोॅ गीत गाबै संज्ञा सैया सुरुज!“

”हमें नै पैलों तोरा छया में भेद कोनो
रुप, रस, गन्ध, शब्द परस में दोनों
यत्न, मात्रा, धर्म, संस्कार एके रंग
बुद्धि, भेद, संयोग, वियोग एके ढग
दोनों के सुभाव हिया दैत्य के सुतावै
दोनों के सुभाव हिया देव के जगावै।

तोरा दोनों ई उठली वासना दबाबैं
तोरा दोनों ऊ सूतली आतमा उठावें“

”जैसे पिहकै मोर देखिके मोरनियां हो
वेसै पिहकै तिरिया तोरोॅ नु रे की।
जैसें किलकै हरिना देखिके हरिनियां हो
वैसें किलकै तिरिया तोरोॅ नु रे की।
जैसे हुलसै बाघ देखिके बघिनियां हो
वैसें हुलसै तिरिया तोरोॅ नु रे की।

जेसे गमकै पिया बगवा बगनियां हो
वैसे गमकै तिरिया तोरोॅ नु रे की।

अहो सामी जी, रजनी दियरिया सरंगवॉ बारै नु रे की।
अहो सामी जी, उमगी लहरिया नदिया मारै नु रे की।
अहो सामी जी, लगि के किनरवा संग की सोहै छै रे की।
अहो सामी जी, ओकरोॅ संगतिया मनमा मोहै छै रे की।
अहो सामी जी, अल्हड़ चंदनिया सगठें नाचै छै रे की।
अहो सामी जी, पिया के मिलनमा सुखवा बांचै छै रे की।
अहो सामी जी, वन के बलरिया बिरिछ संग झूमै छै रे की।
अहो सामी जी, धरती बसै के सरंगवां चूमै छै रे की।
अहो सामी जी, फैली बसंत रितु मुसुकाबै छै रे की।
अहो सामी जी, कलि-कलि भमरवा गीत सुनाबै छै रे की।
अहो सामी जी, सुख के अंगनमा बरखवा भेलै नु रे की।
अहो सामी जी, दुख के अगिनिया बुझिये गेलै नु रे की।

गम-गम गमकै पिया, मंगिया के सिंनुरा हो
झम झम झमकै झुमका आय नु रे की।
चम चम चमके बिंदिया चन्दन के लिलरा हो
छम छम छमकै तिरिया आय नु रे की।
रुन झुन झुनकै पिया, गोड़ के पजनिया हो
गुन गुन गुनकै डंड़वा आय नु रे की।
खन खन खनकै पिया दोन्हू हाथें चुरिया हो
झन झन झनकै कंगना आय नु रे की।
चह चह चहकै खंजन अखिया चिरैयां हो
मह मह महकै केसिया आय नु रे की।“

”की सोहानोॅ लागै दूनू नयना सलौना
तोरोॅ देह-कांति पर बारों चम्पा-सोना
कटि पर सिंह ओठ पर बिम्बा फल
गज जांघ पर गोड़ ऊपर कमल।“

”की रंग छी ई ने जानै छी
तों छोॅ हम्मर हम्में तोरी हय मानै छी।
नै रहलों अब एक कली में
ऐलों ई घूरली गली में
पिया, चित्त तोरा लें कहियो नै बान्धै छी।

कविता तोरी लाज बचईहोॅ
ओकरी गति, लय, यति नित रहिहोॅ
तोरे लगि पिय, मान कहां आरू ठानै छी।
की रंग छी ई नै जानै छी
तों छोॅ हम्मर हम्में तोरी हय मानै छी।“

”कमल समान मुंह मूं कमल रंग
रानी, अबे हमें तों रहबोॅ संगे-संग।
तोरा रंग तोहीं एक रूपसि, सुन्दरि
मन गद गद भेलै रूप पान करि।

हे तिरिया, सुन ई तोरोॅ नै नैन
नाचै धोबिन या पुरैन दिन-रैन।
किरन-संयोग सँ रहे सुहायमान
रमणीय कांतिमान सोना के समान
देतें रहें भुवन के आपनोॅ उजाला
अंधकार के भगैतें रहें देबबाला!“
यहे रंग बाते-बात में खेलतें-खात
सूर्य-संज्ञा के बीतैं लागलै दिन-रात।