भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिद से भरे हुए लोग / वीरू सोनकर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:55, 11 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरू सोनकर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भयानक स्मृतियों के जंगल से
बच-बचा कर
उन्होंने,
एक बीच की राह निकाली थी
सात्वनाओं की एक नदी जहाँ उन्हें छू कर गुजरती थी
वे जीने की जिद से भरे हुए लोग थे
वह नहीं चाहते थे
कि उनकी आँखों में जमा हुआ नमक पानी में बदले
वह भूलना चाहते थे
कि कभी उनकी नस्ल जब-तब पैरो के अँगूठे से
जमीन कुरेदने लगती थी
उन्होंने अपने लिए आग मांगी थी
और वह चाहते थे
दूर कहीं चीखता हुआ स्मृतियों का वह अमिट जंगल
धीरे-धीरे ही सही,
एक दिन पूरा जल जाये!