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जिद से भरे हुए लोग / वीरू सोनकर

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भयानक स्मृतियों के जंगल से
बच-बचा कर
उन्होंने,
एक बीच की राह निकाली थी
सात्वनाओं की एक नदी जहाँ उन्हें छू कर गुजरती थी

वे जीने की जिद से भरे हुए लोग थे
वह नहीं चाहते थे
कि उनकी आँखों में जमा हुआ नमक पानी में बदले
वह भूलना चाहते थे
कि कभी उनकी नस्ल जब-तब पैरो के अँगूठे से
जमीन कुरेदने लगती थी

उन्होंने अपने लिए आग मांगी थी
और वह चाहते थे
दूर कहीं चीखता हुआ स्मृतियों का वह अमिट जंगल
धीरे-धीरे ही सही,
एक दिन पूरा जल जाये!