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अब भी है कोई चिड़िया... / केदारनाथ अग्रवाल

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अब भी है कोई चिड़िया जो सिसक रही है

नील गगन के पंखों में

नील सिंधु के पानी में;

मैं उस चिड़िया की सिसकन से सिहर रहा हूँ

वह चिड़िया मानव का आकुल अमर हृदय है ।